– काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में “महामना -धारा क़े विरुद्ध, समय क़े साथ” नाटक का मंचन
– विश्वविद्यालय परिवार के सदस्य हुए महामना की जीवन यात्रा व संघर्षों से रूबरू
वाराणसी | 24.12.2022: बाल महामना की प्रतिभा, युवा महामना का दृढ़ निश्चय व स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी तथा शिक्षाविद् महामना के संघर्ष के नाट्य रूपांतरण से जहां काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिवार के सदस्य रोमांचित हुए, तो वहीं, दर्शकों को बीएचयू की स्थापना की पृष्ठभूमि की जानकारी मिली।
विश्वविद्यालय स्थित स्वतंत्रता भवन सभागार में बीएचयू क़े संस्थापक भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जयंती की पूर्व संध्या पर “महामना -धारा क़े विरुद्ध, समय क़े साथ ” नाटक का मंचन हुआ जिसके माध्यम से महामना क़े जीवन संघर्षो एवं उनके जीवन क़ी महत्वपूर्ण घटनाओ का नाट्य रूपान्तरण किया गया।
नाटक का आरम्भ महामना क़े जन्म के समय की देश काल एवं परिस्थितियों क़े मंचन से हुआ। नाटक क़े माध्यम से 1857 की महान क्रांति से प्रभावित भारत की के परिदृश्य को भी प्रदर्शित किया गया, साथ ही विश्वविद्यालय क़े संस्थापक के एक राष्ट्रीय चिंतक तथा महान शिक्षाविद क़े रूप में विकास और जीवन संघर्षो को भी संक्षेप में प्रदर्शित किया गया |
नाटक में मालवीय जी द्वारा धर्मसभाओ, मित्र मंडलियो में दिए जाने वाले वक्तव्य एवं वाद विवाद को भी जगह दी गई। नाटक क़े माध्यम से महामना द्वारा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना क़े क्रम में आने वाली चुनौतियों एवं उनके त्याग की कथा का भी वर्णन किया गया |
गिरमिटिया मजदूरी प्रथा विरोध हो या जलियावाला बाग में रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे भारतीयों पर गोलियाँ चलाने पर उनका दुख, बचाऊ बाबा की मृत्यु पर मालवीय जी का विलाप हो या चौरी चौरा कांड में गिरफ्तार 171 भारतीयों को अपनी प्रखर वकालत के द्वारा निर्दोष साबित करना, ऐसे तमाम महत्वपूर्ण प्रसंगों को नाटक का हिस्सा बनाया गया, जिन्हे अपने शानदार अभिनय के दम पर भावपूर्ण प्रस्तुति कर कलाकारों ने दर्शकों को भावविह्वल कर दिया।
मंचन के दौरान अनेक पल ऐसे रहे जब सभागार तालियों व मालवीय जी के जयघोष से गूंज उठा। नाटक का पटाक्षेप महामना के वृद्ध हो जाने पर जुगल किशोर बिड़ला जी द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाने हेतु दिए गए वचन पर होता है, जो इस नाटक तथा महामना के जीवन के प्रमुख प्रसंगों को एक सार्थक परिणति तक पंहुचाता है।
नाटक का लेखन समाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. मंजीत चतुर्वेदी द्वारा किया गया तथा निर्देशन अंग्रेजी विभाग क़े शोधार्थी रवि कुमार राय द्वारा किया गया | मुख्य पात्रों में पंडित मदन मोहन मालवीय का पात्र, प्रतीक त्रिपाठी, एलीना सिंह व सौरभ शांडिल्य द्वारा निभाया गया, सूत्रधार क़े रूप में हिमांशु तिवारी, काशी नरेश क़े रूप में प्रो सदाशिव द्विवेदी, राजा राम पाल सिंह और दरभंगा महाराज क़े रूप में डॉ ज्ञानेंद्र राय दिखे, इसके अतिरिक्त आलोक भारद्वाज, डॉ अमित पाण्डेय, दिव्यांशी भारद्वाज, ईशा भारती, अजय चौहान, नीतीश पाराशर, सम्राट सिंह कपूर, अंकित मिश्रा, समीर तिवारी, सोनू कुमार, सुप्रिया नंदी, शुशांत कुमार, रिमी सरकार एवं कुंतोलिका झारिमूने ने विभिन्न किरदारों की भूमिका निभाई।
नाटक के अंत में निर्देशक रवि कुमार राय ने सभी कलाकारों का परिचय दिया। प्रो. मंजीत चतुर्वेदी ने नाटक के लेखन व प्रस्तुतिकरण के पीछे का विचार साझा किया।
कार्यक्रम मे कुलगुरु प्रो. वी के शुक्ला, कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह, मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र के समन्वयक प्रो.संजय कुमार तथा छात्र अधिष्ठाता प्रो.अनुपम कुमार नेमा, प्रो.राजकुमार आदि समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शिक्षक व अधिकारी उपस्थित रहे। नाटक का मंचन मालवीय मूल्य द्वारा आयोजित मालवीय जयंती समारोह सप्ताह 2022 के अंतर्गत किया गया।