वाराणसी. शारदीय नवरात्रि के पंचमी तिथि (पांचवे दिन) देवी दुर्गा के पांचवे स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है. पंचमी तिथि के अवसर पर देवी के इस पांचवे रूप के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है. काशी में माता स्कंदमाता का मंदिर जैतपुरा क्षेत्र में स्थित है.
मान्यता है कि इस मंदिर में स्कंदमाता माता का दर्शन करने वालों के मन की सारी अभिलाषा पूरी होती है. इस लिए नवरात्र के दिनों में यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाओं के साथ दर्शन पूजन के लिए आते हैं.
स्कंदमाता माता मंदिर में सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया.
स्कंदमाता के पुत्र है कार्तिकेय
मान्यता के अनुसार, स्कंदमाता कार्तिकेय की माता होने के कारण ही देवी के इस स्वरूप को स्कंदमाता का नाम मिला है. काशी खंड और देवी पुराण के क्रम में स्कंद पुराण में देवी का भव्य रूप से वर्णन किया गया है. मां स्कंदमाता को विद्यावाहिनी, माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है. सिंह पर सवार माता अपने गोद में सनत कुमार भगवान कार्तिकेय को लिए हुए संदेश देती हैं कि सांसारिक मोह माया में रहते हुए भी भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है और समय आने पर बुद्धि और विवेक से असुरों का नाश करना चाहिए. माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है. इसलिए इन्हें अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है. पूजा के बाद अपनी आरती से स्कंदमाता बहुत प्रसन्न होती हैं.
स्कंदमाता मंदिर के पुजारी ने बताया नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता का दर्शन पूजन किया जाता है. यहां पर मां स्कंदमाता विराजमान है. इनके पुत्र कार्तिकेय हैं. आज के दिन दर्शन पूजन करने से सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है. श्रद्धा भाव से मां को नारियल फूल और चुनरी चढ़ाया जाता है. सुबह से ही लोग माता का दर्शन करना है. आज के दर्शन का विशेष महत्व है.