वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में गुलिस्तान एकता किन्नर सेवा ट्रस्ट द्वारा IMS BHU के एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर एवं प्रमुख डॉ. रोयाना सिंह के सहयोग से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति जागरूकता को लेकर था. वाराणसी के ट्रांसजेंडर समुदाय की अध्यक्ष सलमा चौधरी ने समुदाय के सदस्यों के साथ ट्रांसजेंडर होने की अपनी यात्रा को साझा किया। कार्यक्रम में वाराणसी कमिश्नरेट की तरफ से एसीपी ममता रानी मौजूद रही। इस कार्यक्रम में GENDER SENSITIZATION BEYOND THE BINARY विषय पर सभी वक्ताओं ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में पहुंची एसीपी ममता रानी ने अपने विचार साझा करते हुए कि ट्रांसजेंडर को उनके जीवन में आगे बढ़ने में कैसे मदद कर सकते हैं। कार्यक्रम में मौजूद ट्रांसजेंडरो और लोगो को संबोधित करते हुए कहा कि तीसरे लिंग के रूप में उनके साथ भेदभाव न करें बल्कि उन्हें दूसरों के समान ही सम्मान दें।
उन्होंने कहा कि हम डॉक्टरों से नवजात के बारे में पूछा जाता है कि वह लड़का है या लड़की? लेकिन हम किसी व्यक्ति के लिंग को उनके जननांगों और कपड़ों के आधार पर परिभाषित नहीं कर सकते, जैसा कि सलमा चौधरी ने कहा था। ट्रांसपर्सन होना कोई विकल्प नहीं है लेकिन ट्रांसफ़ोबिक होना एक विकल्प है।
इस मौके पर डॉक्टर रोयना सिंह ने कहा कि हम डॉक्टर और शोधकर्ता के रूप में कैरियोटाइपिंग, प्राइमर आधारित पीसीआर और क्यूएफ-पीसीआर जैसी तकनीकों के माध्यम से यौन विकास के विकारों के विभिन्न रूपों (डीएसडी; जिसे पहले इंटरसेक्स कहा जाता था) के निदान में सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं।
ये आनुवांशिक आधारित अध्ययन व्यक्तियों और परिवारों को वास्तविक कारण जानने और उचित उपचार, दवाओं के साथ आगे बढ़ने और स्वस्थ और सम्मान जनक जीवन जीने में मदद करते हैं।इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें हर उस मंच पर अवसर दें जहां शिक्षा पहली प्राथमिकता हो।
इसलिए मैं इस सत्र को इस उद्धरण के साथ समाप्त करना चाहूंगा कि “कुछ अपने शरीर में पैदा होते हैं, लेकिन दूसरों को इसके लिए लड़ना पड़ता है”।
वीडियो: अशोक पाण्डेय (उत्तम सवेरा न्यूज़, मीडिया प्रभारी, उत्तर प्रदेश)