वाराणसी. शारदीय नवरात्रि के सप्तमी तिथि ( सातवां दिन) देवी दुर्गा के सातवां स्वरूप माता कालरात्रि की पूजा की जाती है. सप्तमी तिथि के अवसर पर देवी के इस सातवां रूप के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है. काशी में माता कालरात्रि का मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के कालिका गली में स्थित है.
मा के दर्शन से श्रद्धालुओं के जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाओं का शमन होता है.
ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर जब आसुरी शक्तियों का प्रकोप अत्यधिक बढ़ गया तो देवी कालरात्रि का अवतरण हुआ. माता ने सभी असुरों का संहार कर धरती को पापमुक्त किया. महादेव के वक्षस्थल पर चरण पड़ने के बाद माता का क्रोध शांत हुआ. माता हजारों साल से स्वयंभू स्वरूप में काशी में विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता की आराधना करता है, उसकी सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. माता अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और वैभव का आशीर्वाद देती हैं. भक्तों की सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
नवरात्र के सातवें दिन रविवार की भोर से ही माता के दर्शन को भक्तों की कतार लगी रही. भक्त नारियल, चुनरी और प्रसाद लेकर माता के दर्शन को पहुंचे. कतार में लगकर माता के दर्शन कर रहे हैं. पूरा इलाका माता की जय-जयकार से गूंज रहा है. मंदिर के पुजारी राजीव दीक्षित ने बताया कि माता आदिकाल से काशी में विराजमान हैं. माता अपने भक्तों के जीवन में आने वाली सभी तरह की बाधाएं दूर करती हैं. सुख-समृद्धि, आरोग्य और धन-वैभव का आशीर्वाद देती हैं.