शारदीय नवरात्रि के चतुर्थी तिथि पर मा कुष्मांडा का है मान , भोर से ही भक्तों की लगी है लंबी कतार

Shwetabh Singh
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वाराणसी. शारदीय नवरात्रि के चतुर्थी तिथि (चौथे दिन) देवी दुर्गा के चौथा स्वरूप माता कुष्मांडा की पूजा की जाती है. चतुर्थी तिथि के अवसर पर देवी के इस चौथे रूप के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है. काशी में माता कुष्मांडा का मंदिर दुर्गाकुंड क्षेत्र में स्थित है.

भक्तगण माता के दर्शन के लिए भोर से ही कतार बंद हो कर अपने बारी का इंतजार कर रहे.

वेसे तो नवरात्रि का हर दिन विशेष महत्व रखता है और प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की उपासना की जाती है. वर्ष 2025 में नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा होगी. यह दिन आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने और सकारात्मकता को जीवन में स्थापित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार, इस दिन के शुभ मुहूर्त विशेष रूप से पूजा और व्रत के लिए अत्यंत फलदायी होते हैं.

 

मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां हर व्यक्ति अपनी पत्नी, मां और बच्चों को लेकर आता है. यहां पर संतानोपत्ति का भी आशीर्वाद मिलता है. माता के दरबार में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लगी है. भक्त माता के दर्शन के लिए कतार बद्ध होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. यहां पर भक्तों को सुलभ दर्शन हो सके इसके लिए पूरी व्यवस्था की गई है.

चौथे दिन का शुभ रंग

नवरात्रि के चतुर्थी तिथि (चौथे दिन) का शुभ रंग पीला माना जाता है. यह रंग ऊर्जा, प्रकाश और सकारात्मकता का प्रतीक है. गुरुवार के दिन पीला वस्त्र धारण करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और मन प्रसन्न रहता है. पीले रंग का संबंध ज्ञान और बुद्धि से भी है, इसलिए यह रंग साधक को आंतरिक शांति और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है.

कूष्मांडा माता की पूजा विधि

पूजा विधि के अनुसार, चौथे दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें. घर को गंगाजल से पवित्र करने के बाद मां कूष्मांडा की पूजा का संकल्प लें. लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. पूजा के समय पीले वस्त्र, फूल, फल, नैवेद्य, मिठाई अर्पित करें. मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग विशेष रूप से प्रिय है, इसलिए उन्हें यह प्रसाद अवश्य अर्पित करें. साथ ही हलवे का भोग भी लगाया जा सकता है. इसके बाद धूप-दीप प्रज्वलित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, फिर आरती कर प्रसाद ग्रहण करें.

 

 

 

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