भारतीय ज्ञान परंपरा में असि नदी का वैशिष्ट्य ‘ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

Uttam Savera News
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वाराणसी | भारतीय ज्ञान परंपरा में असि नदी का वैशिष्ट्य ‘ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन धर्म शास्त्र मीमांसा विभाग, गंगा समग्र और सेंटर फॉर इनवयमेंटल ऐण्ड सोसल रिसर्च द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित धर्म विज्ञान संकाय में संपन्न हुआ। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री रामाशीष जी ने कहा कि जल तीर्थों के संरक्षण हेतु उनके अविरल व निर्मल प्रवाह को जस का तस बना कर रखना होगा। अविरलता और निर्मलता में बाधा ही हमारी पौराणिक नदियों तथा जल तीर्थों के लुप्त होने का एक बड़ा कारण है। श्री राम आशीष ने आगे कहा कि बढ़ती हुई आबादी की भोगवादी प्रवृत्ति ही नदियों के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण है तथा तंत्र व सरकारों का उदासीन होना और भी घातक है। अस्सी नदी के अतिक्रमण को मुक्त किए जाने तथा किनारों पर वृक्षारोपण के माध्यम से उसे बचाए जाने की अपील की।
उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रुप में पधारे उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री श्री दयाशंकर मिश्र दयालु ने अस्सी नदी के पुनर्जीवन की संभावनाओं तथा गोष्ठी में संपन्न प्रस्ताव को सरकार के समक्ष रखे जाने का आश्वासन दिया। मुख्य अतिथि भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष महेश चंद्र श्रीवास्तव ने भी असि नदी के पुनर्जीवन के लिए किए जा रहे प्रयासों में अपना समर्थन जाहिर करते हुए अभियान को जन जन तक पहुंचाने की अपील की। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर कमलेश झा ने नदियों की दुर्दशा के वर्तमान कारणों पर चर्चा करते हुए राजसत्ता को दोषी बताते हुए नदियों की उपेक्षा के उत्तर स्वरूप जन सामान्य को एकजुट होने तथा लोक जागरण से जोड़कर नदी को इसके वास्तविक स्वरूप में ले आने की अपील की । वाराणसी के प्राचीन नाम में वरुणा और अस्सी जुड़े होने के कारणों तथा उसके सांस्कृतिक पहचान की महत्ता पर प्रकाश डाला।
इस सत्र का संचालन प्रोफेसर माधव जनार्दन रटाटे स्वागत श्री रुपेश पांडे तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री कपींद्र तिवारी ने किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में आमंत्रित विविध क्षेत्रों के विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार रखे तथा शोध छात्रों द्वारा शोध पत्र भी पढ़ा गया। इस क्रम में पूर्व संकाय अध्यक्ष प्रोफेसर हृदय रंजन शर्मा ने पुराणों मे वर्णित संदर्भों के हवाले से अस्सी नदी को ईड़ा वरुणा को पिंगला तथा गंगा को सुषुम्ना नाड़ी की संज्ञा दिए जाने का उल्लेख करते हुए काशी को इन के मध्य स्थित आज्ञा चक्र के रूप में स्थित बताया। पौराणिक आख्यानों और संदर्भ – चर्चा के माध्यम से असि नदी के पौराणिक संदर्भ को व्यक्त किया। अगले वक्ता के रूप में प्रोफ़ेसर श्याम गंगाधर बापट ने असि और वरुणा के उत्पत्ति के प्रसंग की पौराणिक संदर्भ में चर्चा की। प्रोफेसर भाल शास्त्री ने अपने शोध पत्र के माध्यम से असि नदी के सांस्कृतिक पौराणिक व धार्मिक महत्व को संगोष्ठी में उपस्थित लोगों के समक्ष विस्तार पूर्वक रखा। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने वरुणा व अस्सी नदी के मामले में एनजीटी के समक्ष दायर की गई याचिका के माध्यम से हो रही वर्तमान विधिक कार्यवाही के संदर्भ में आख्या प्रस्तुत की। आईआईटी के प्रोफेसर प्रभात कुमार सिंह ने असि नदी के ऊपर सिविल इंजीनियरिंग विभाग की तरफ से किए जा रहे प्रयासों तथा विभिन्न सरकारी संस्थानों में दिए गए अपने सुझाव को सामने रखा। साथ ही उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के द्वारा अपने खुद के एसटीपी निर्माण की जरूरत तथा जल के निस्तारण की भी अपील की। काशी हिंदू विश्वविद्यालय भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर केएनपी राजू ने अपने शोध छात्र द्वारा विगत वर्ष प्रस्तुत की गई थिसिस को महत्वपूर्ण कार्य बताते हुए असि नदी के उद्गम स्थल को प्रयागराज के पास से असि संगमेश्वर तक कुल 188 किलोमीटर की लंबी दूरी का पुराना संदर्भ दिया तथा इसे सूख जाने व शुष्का नदी के रूप में वर्णित होने के वैज्ञानिक ,भौगोलिक संदर्भों की चर्चा की। अगले वक्ता के रूप में डॉ व्यंकटेश दत्ता ने कहा कि नदियां प्राकृतिक धरोहर हैं और इन नदियों को बचाया जाना धरोहरों को बचाए जाने की तरह से है; इसे अभियान के रूप में लिया जाना चाहिए साथ ही उन्होंने सिंचाई विभाग तथा राजस्व विभाग की गैर जिम्मेदाराना करतूतों को वर्तमान परिदृश्य में नदियों की विलुप्तता के कारण तथा खलनायक के रूप में बताया। नदियों के पुनर्जीवन के तीन सीढ़ियों के रूप में इन्होंने ” फिशेबल, स्विमेबल तथा ड्रिंकेबल ” की परिकल्पना के अनुवर्तन की अपील की। अगले वक्ता के रूप में प्रोफेसर राणा पी बी सिंह ने अस्सी नदी के ऊपर किए गए भौगोलिक तथा वैज्ञानिक सर्वेक्षण की चर्चा करते हुए इसे कागजी प्रयासों के अतिरिक्त ज्ञान व विज्ञान को जन सामान्य के जीवन से जोड़ते हुए व्यवहारिक पहल के अभियानों की जरूरत पर प्रकाश डाला । इस द्वितीय तथा समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रोफेसर सिद्धनाथ उपाध्याय ने वर्तमान शहरीकरण की आधी के दौड़ में प्रकृति केंद्रित विकास तथा नगरीकरण के संरचना को जल शुद्धीकरण एवं अवजल के शोधन तथा पारिस्थितिकी तंत्र को ठीक करने जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सरकार व समाज को मिलकर काम करने व योजना बनाने की बात कही। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफ़ेसर उपाध्याय ने अस्सी नदी के पौराणिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक व सामाजिक पक्षों को समेकित रूप से समझते हुए इसके पुनर्जीवन के लिए सामूहिक व समग्र योजना बनाकर आगे बढ़ने की अपील करते हुए इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन को एक महत्वपूर्ण शुरुआत की संज्ञा दी । कार्यक्रम के अंत में आयोजन समूह के द्वारा अस्सी नदी के पुनर्जीवन, उसके सांस्कृतिक व सामाजिक स्वरूप को जन सामान्य के बीच ले जाते हुए एक बड़े लोक जागरण के माध्यम से पुनर्जीवित करने के अभियान को आगे बढ़ाए जाने का संकल्प लिया गया तथा साथ ही यह तय किया गया इस संगोष्ठी में आए हुए विद्वत जनों के विचार तथा शोध आलेखों को एक पत्रिका के रूप में प्रकाशित कर इसे जन जन तक पहुंचाते हुए असि नदी के पुनर्जीवन अभियान को मजबूत किया जाएगा। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रमुख रूप से अवधेश दीक्षित, रुपेश पांडेय, संजय शुक्ल, चंद्रशेखर मिश्र, मोहन सिंह, आदि सैकडों लोग उपस्थित रहे।

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