वाराणसी | छठ पूजा, सूर्य भगवान को समर्पित चार दिवसीय त्योहार है। आज छठ का तीसरा दिन है। आज व्रती तालाब, नदी आदि पानी के स्रोत में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया। अब व्रतियों को उगते सूर्य का इंतजार रहेगा। भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है कुछ पुरुष भी इस व्रत रखते हैं। छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है।
भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है. ज्योतिषियों का कहना है कि ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है. इसके अलावा सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं.
तीसरे दिन यानि रविवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया गया। अर्घ्य देने के लिए शाम को तालाबों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। रविवार की दोपहर से ही शहर के अलग-अलग क्षेत्रों से लोग बाजे-गाजे और ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते घाटों, कुंडों और सरोवरों पर पहुंचने लगे थे।
पुरुष अपने सिर पर फलों और पकवानों से भरे डाल लिए और महिलायें हाथों में सुप लिए परंपरिक परिधान में छठ गीत गाते हुए जब निकली तो पूरा वातावरण छठमय हो गया। श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को तालाबों, कुंडों और गंगा घाटों के किनारे विधि विधान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की।
इस दौरान छठ पूजा के पारंपरिक लोक गीत गूंजते रहे। महापर्व के अवसर पर सभी घाट रंगीन रौशनी से नहाए हुए है। साथ ही पुलिस प्रशासन की ओर से घाटों, कुंडों और सरोवरों पर सुरक्षा के लिए जवान तैनात किए गए हैं। वहीं पानी मे भी बैरिकेडिंग कर एनडीआरएफ की टीम तैनात की गई है। ताकि कोई गहरे पानी मे न जा सके। वहीं घाटों तक जाने वाले रास्तों पर भी बैरिकेडिंग कर रुट डायवर्जन किया गया था ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो।
इसके पहले व्रतियों ने शाम भगवान सूर्य की अराधना की और खरना किया था। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। पर्व के चौथे और अंतिम दिन यानी सोमवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद श्रद्धालुओं का व्रत पूरा हो जाएगा। इसके बाद व्रती अन्न और जल ग्रहण करेंगे।
फोटो:वीडियो: अशोक पाण्डेय (उत्तम सवेरा न्यूज़, मीडिया प्रभारी, उत्तर प्रदेश)